Monday, December 16, 2013

कहानी गुलज़ार के पहले गीत की ...

क्या आप जानते हैं कि मशहुर शायर गुलज़ार को अपना पहला गीत लिखने मौका कैसे मिला...
आज आपको बतातें है कि कैसे गुलज़ार ने तय किया गैरेज से गीतकार बनने तक का सफर....
ये उस वक्त की बात हैं जब फिल्मकार बिमल रॉय बंदिनी का निर्माण कर रहें हैं और सुरों के बादशाह सचिन देव बरमन इस फिल्म के संगीत पर काम कर रहें थें.
इसी बीच फिल्म के गीतकार शैलेन्द्र और बरमन दा के बीच गीतों के बोलों को लेकर कुछ कहासुनी हुई और इस मामुली बहस ने झगडे की शक्ल ले ली. बात यहां तक पहुंची की सचिनदा और शैलेन्द्र ने एक साथ काम ना करने का फैसला ले लिया.
इन दोनों के झगडों में फंस गई बिमलदा की बंदिनी.
अब शैलेन्द्र साहब दिल के बेहद अच्छे इंसान थे एक लिट्रैचर ग्रुप के तहत वो गुलजार को जानते थे और वो ये भी जानते थे कि गैरेज में काम कर रहें गुलज़ार कलम के जादुगर हैं.
बसं फिर क्या था शैलेन्द्र ने गुलज़ार को बिमलदा से मिलने को कहा.
हालांकि फिल्मों से ज्यादा साहित्य में रुचि रखने वाले गुलजार बिमलदा से मिलने में बिलकुल दिलचस्प नहीं थे लेकिन वो शैलेन्द्र थे जिन्होंने जबरदस्तीसे उन्हें बिमलदा के पास भेजा और फिर उन्होंने अपना पहला गाना लिखा "मोरा गोरा अंग लईले"...
हालांकि गुलज़ार को बंदिनी के लिए महज एक गाना लिखने का  ही मौका मिला क्योंकि सजिनदा और शैलेन्द्र में सुलह हो गई और फिल्म के बाकी के गाने फिर शैलेन्द्र साहबं ने ही लिखें...
अब ये बात बिमलदा का कुछ खटकी तो उन्होंने गुलज़ार को बतौर गीतकार नहीं तो बतौर असिस्टंट अपनी फिल्म का हिस्सा बनाया और इस तरह से गुलज़ार ने महान फिल्ममेकर बिमल रॉय से फिल्म मेकिंग के गुर सीखें.

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