Tuesday, March 25, 2014

ठहरिए होश में आ लू तो चले जाईएगा...

काश हम कह यह पाते कि ठहरिए होश में आ लू तो,चले जाईएगा...
लेकिन जाने वाले तो नही रुके हमे होश मे आने से पहले ही वो चले गये...
जी हां हम बात आज उसी अदाकारा की कर रहें हैं जिसने दुनिया के रंगमच से बेहद खामोशी से एक्जिट ले ली...
गुजरे जमाने की अदाकारा नंदा जिन्हें फिल्मी दुनिया बेबी नंदा के नाम से पहचानती है...
आज की सुबह ही इस मनहुस खबर से हुई कि लीजंड एक्ट्रैस नंदा हमारे बीच नही रही.
आज सुबह नंदा जी ने दुनिया से रुखसती ले ली...


यह सुनकर तो पहले यकीन नही हुआ क्योंकि अभी कुछ दिनों पहले ही नंदा जी की झलक हमने देखी थी.
और उनको देखकर लगा ही नही कि वो युं अचानक दुनिया छोड देगी.
उम्र होने के बाद नंदा जी कभी दुनिया के सामने नही आयी.
लेकिन इनका भी एक दौर था जब दुनिया इनकी कदमों में थी.
चलिए आज आपको बताते है नंदा जी से जुडे कई सुने अनसुने किस्से.
बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट फिल्मों में आयी बेबी नंदा जब हिरोइन के तौर पर काम करने से पहले कई फिल्मों में सपोर्टिंग रोल निभा चुकी थी.
इन्ही में से एक फिल्म थी नवकेतन बैनर की काला बाजार जिसमें नंदा बनी थी रोमांटिक हिरो देव आनंद की छोटी बहन.
अब शुरु से ही नंदा देव साहबं की बेहद बडी फैन थी और देव साहबं भी यह बात अच्छी तरह से जानते थे.
नंदा की ख्वाहिश थी कि वो देव साहबं के साथ एक बार तो फिल्मी परदे पर रोमांस करें.
जब नंदा ने देव आनंद को अपने दिल की यह बात बतायी तो देव साहबं ने नंदा से एक वादा किया कि वो कभी ना कभी नंदा के साथ परदे पर इश्क फरमाएंगे...
और देव बाबु ने ये वादा पुरा किया फिल्म हम दोनो में...
नवकेतन बैनर की फिल्म हम दोनो में नंदा को देव आनंद की हिरोईन बनने का मौका मिला.

लोगों ने साधना के साथ साथ नंदा को इस फिल्म में बेहद पसंद किया.
यहां तक देव आनंद औऱ नंदा की जोडी को बेहद सराहा गया.
नतीजन हम दोनो एक सपर हिट फिल्म साबित हुई.
देव आनंद इस बात से इतने खुश हो गये कि उन्होने अपनी अगली फिल्म तीन देवियां में भी नंदा को लीड रोल में हिरोईन के तौर पर साईन कर लिया.

मनोज कुमार के लिए तो नंदा हमेशा से एंजेल रही.
गुमनाम में मनोज कुमार नये कलाकार थे जबकि नंदा एक स्टार थी.
फिर भी मनोज कुमार के मुताबिक नंदा उस जमाने एक ऐसी हिरोईन थी जिसने कभी भी स्टारी टैट्रमस् नही दिखाए.

शायद यही वजह रही कि जब मनोज कुमार को अपनी फिल्म शोर के लिए एक छोटे से रोल के लिए हिरोईन नही मिल रही थी तब वो नंदा जी के पास गये और नंदा जी ने महज एक शरत के बदले इस रोल को रजामंदी दे दे दी.
नंदा जी के दिल को ये रोल इतना छु गया कि उन्होने मनोज साहब के सामने एक भी पैसा नही लेने की शरत रख दी.
और हुआ भी यही शोर के लिए एक छोटा लेकिन बेहतरीन रोल निभा चुकी नंदा ने मनोज कुमार से एक भी रुपया नही लिया.
ये बात मनोज कुमार के दिल को इतनी लग गई कि उस दिन से उन्होने नंदा जी तो एंजल कहना शुरु कर दिया.

नंदा जी और शशी कपुर का भी एक जमाना था.इस जोडी ने भी कई सुुपर हिट फिल्में दी.
वो नंदा ही थी जिसने फ्लॉप फिल्में दे चुके शशी कपुर को उनके बुरे दौर में यह कहा था कि एक दिन वो बेहद बडे और कामियाब स्टार बनेंगें.

जहां उस जमाने में हिरोइन्स जितनी खुबसुरती के लिए जानी जाती थी उतने ही मशहुर थे हिरोइन्स के नखरें भी लेकिन नंदा एक लौती ऐसी हिरोईन थी जो शोहरत के बुलंदी पर पहुंचने के बाद भी जमीन पर ही थी.
खैर नंदा जैसी अदाकारा के गुजर जाने से एक युग का अंत हो गया.
चलिए नंदा की याद में सुनते हैं मेरी पसंद के उनके कुछ नगमें....
1.https://www.youtube.com/watch?v=XTYuTpfwxRQ
2.https://www.youtube.com/watch?v=ygc-GD_khkY
3.https://www.youtube.com/watch?v=zxqEXVAozHs
4.https://www.youtube.com/watch?v=8P-tckjfm10
5.https://www.youtube.com/watch?v=7eXB7c3x-Lg
  

Saturday, March 15, 2014

VAISHALI'S BLOG: किस्सा रंग बरसे का !!!

VAISHALI'S BLOG: किस्सा रंग बरसे का !!!: होली के दिन जितना जरुरी रंग, पानी और भांग होती है उतना ही जरुरी होता है "रंग बरसे" ये गाना भी. होली का ऑलटाईम फेवरेट ये गाना होल...

किस्सा रंग बरसे का !!!

होली के दिन जितना जरुरी रंग, पानी और भांग होती है उतना ही जरुरी होता है "रंग बरसे" ये गाना भी.
होली का ऑलटाईम फेवरेट ये गाना होली के दिन हर कोई एक दफे तो जरुर गुनगुनाता है.
जैसे रंगो के बिना होली नही खेली जा सकती वैसे इस गीत के बिना भी होली पुरी नही हो सकती.
तो चलिए होली के मौसम मे आज आपको सुनाते हैं किस्सा "रंग बरसे का"...
वैसे सब जानते हैं कि फिल्म सिलसिला का "रंग बरसे"ये गीत अमिताभ बच्चन के पिता और मशहुर कवि हरिवंश राय बच्चन की रचना है.लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस गीत की धुन किसने बनायी है ? 
तो ये धुन बनायी है खुद हरिवंश राय बच्चन ने ही.

दरअसल यश चोपडा की फिल्म  सिलसिला की कहानी अमिताभ बच्चन के दिल के काफी करीब थी. इसलिए अमिताभ इस फिल्म की मेकिंग में पुुरी तरह से दिलचस्पी ले रहे थे.फिल्म की कास्टिंग से लेकर म्युजिक तक अमिताभ हर चीज पर बारिकी से ध्यान दे रहें थे.
इसी बीच जब यश जी को इस फिल्म में एक होली का गाना डालने की सुझी तो अमिताभ को याद आयी अपने बाबुजी की एक पुरानी रचना रंग बरसे जो वो बचपन से हर होली पर सुनते आ रहे थे.
अब उन्होने अपने पिता से अनुमती लेकर ये कविता तो फिल्म में इस्तेमाल कर ली लेकिन जब इन शब्दों को लय में बांधने की बात आयी तो सिलसिला के म्युजिक डिरेक्टर शिव हरी को लगा कि जिस लहजे में ये रचना लिखी गयी है उसी लहजे में इसकी धुन भी बननी चाहिए और ये काम रचना का रचैता ही बखुबी कर सकता है.
फिर क्या अमिताभ बच्चन के पिता ने लोक संगीत के आधार पर ही इस गाने की धुन बनायी.और खुद अमिताभ ने पारंपारिक लहजे में इस गीत को गाकर होली जैसे पर्व को हमेशा के लिए रंगीन बना दिया.


Wednesday, March 12, 2014

आखिर क्यों जया बच्चन ने आधी रात को घर से निकाला अमिताभ को!!!

क्यों लग रहा है ना आपको कि मैं आज आपको जया और अमिताभ के बीच छिडी किसी जंग का किस्सा बताउंगी.
तो जी नहीं ऐसा बिलकुल नही हैं जया और अमिताभ बच्चन के बीच इतना प्यार है कि जंग की कोई जगह ही नही हैं.
लेकिन फिर भी कुछ ऐसा हुआ कि जिस वजह से जया बच्चन को आधी रात को अपने शौहर को घर से बाहर निकालना पडा.
चलिए बच्चनस् के प्यार का एक लाजवाब किस्सा आज आपके साथ शेउर करतीं हुं.

दरअसल ये बात है 80 के दशक की,जब एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन शोहरत के सातवे आसमान पर थे और उनकी पत्नी जया बच्चन फैमिली लाईफ इंजाय कर रही थी.
इसी दौरान महान फिल्मकार कमाल अामरोही ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी को लेकर बना रहें थें वॉर सागा 
"रज़िया सुल्तान".
अब एक दिन हुआ युं कि मिसेस बच्चन के कानों पर कहीं से फिल्म रज़िया सुल्तान के एक गाने की धुन पड गई.इस गीत के बोल थे "ये दिल-ए-नादान".
बसं इस गाने की जरा सी झलक ने जया जी को इतना दिवाना बना दिया कि वो बेसब्र होकर इस गाने के रिकार्ड ढुंडने लगी.
लेकिन अफसोस बेहद तलाश करने के बाद भी जया जी को रज़िया सुल्तान का रिकार्ड नही मिला.
जया बच्चन बेहद निराश हो गई और आखिर कार उन्होेंने अपने पति अमिताभ बच्चन को अपने उदासी का सबब बताया और उनसे जिद की कि अभी के अभी जाईए और कहीं से भी लेकर आईए ये गाना.
उस वक्त आधी रात बीत चुकी थी.
अब अपनी बीवी की इस फरमाईश को भला बच्चन साहब कैसे ना मानते. बहोत मशक्कत के बाद उन्हें पता चला कि ये गाना फिल्म रज़िया सुल्तान का है और इसकी धुन बनायी है खैय्याम साहबं ने.
बसं इतनी जानकारी मिलतें ही अमिताभ बच्चन ने अपनी कार निकाली जया को लिया और रात के करीब डेढ़ बजे पहुंच गये खैय्याम साहब के घर पर.
अब इतनी रात गये अमिताभ बच्चन और जया बच्चन को अपने चौकट पर देखकर खैय्याम साहब और उनकी पत्नी सन्न रह गये.
अब अमितभ जैसे सुपरस्टार को कह भी क्या सकतें है यहीं सोचकर खैय्याम साहब चुप हो गये.
फिर अमिताभ ने उनसे देर से आने की माफी मांगते हुए अपने बीवी की फरमाईश बतायी.
जिसपर खैय्याम साहबं इतने खुश हो गये कि उन्होंने रज़िया सुल्तान के इस गाने ये दिल-ए-नादान की रिकॉर्डिंग वर्जन ही जया जी को तोहफे में दे दी.
यहां तक के इन दोनो मियां बीवी ने इस गाने को वहीं पर कई बार सुना और खैय्याम साहब को इतना बेहतरीन गाना कंपोज करने के लिए बधाई देकर वहां से निकल गयें.
तो देखा आपने किस तरह से अमिताभ बच्चन ने पुुरी कि अपनी पत्नी जया बच्चन के दिल की आरजु.



Monday, March 10, 2014

किस्सा कभी कभी का !!!

कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है,
कि जैसे तुझको बनाया गया है मेरे लिए.....
ये ऑल टाईम क्लासिक सॉंग मेरी तरह आपका भी फेवरेट सॉंग होगा....
जब भी ये गाना सुनते है माहौल एक दम रुहानी हो जाता है.....
मौसम एकदम रोमांटिक हो जाता है...
शायद यही वजह है कि फिल्म मेकर यश चोपडा को साहिर लुधयान्वी की ये नज्म इस कदर पसंद आयी थी कि उन्होंने इस नज्म से इंस्पायर होकर एक फिल्म ही बनाने की सोची.
और इस तरह से जन्म हुआ फिल्म कभी कभी का...

चलिए आज आपको सुनाते है कभी कभी से जुडा दिलचस्प किस्सा.
 कभी कभी के लिए यश चोपडा लक्ष्मीकांत प्यारेलाल से म्युजिक कंपोज करवाना चाहते थें.क्योंकि
लक्ष्मी-प्यारे  यश चोपडा की सुपर हिट फिल्म दाग़ में सुपरहिट म्युजिक दे चुके थे.
लेकिन किन्ही वजहों से ऐसा हो नही पाया और कभी कभी मिल गई खैय्याम को.
अब कभी कभी के लिए म्युजिक कंपोज करते हुए खैय्याम साहबं ने अमिताभ बच्चन के लिए मुकेश से प्लैबैक कराने का सोचा.
दरअसल एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन की इमेज इस फिल्म में पुरी तरह से बदलने वाली थी.
एक्शन हिरो को रोमांटिक हिरो के तौर पर पेश किया जा रहा था लिहाजा अमिताभ को एक रोमांटिक वॉईस देने का सोचा गया और नतीजन रुहानी आवाज़ के मालिक मुकेश से कभी कभी के सभी गाने गंवाने का पक्का हो गया.
धुन बन गई, रिहर्सल हो गई लेकिन बदकिस्मती से रिकार्डिंग से ठीक एक दिन पहले मुकेश जी को दिल का दौरा पड गया और वो अस्पताल में भऱती हो गये.
मुकेश जी कि बीमारी के बाद यश चोपडा औऱ खैय्याम ने फिल्म के सभी गाने अमिताभ बच्चन से गंवाने का एक बेहद बडा क्रांतीकारी कदम उठाने का सोचा.
और वो एक दिन मुकेश साहब से मिलने अस्पताल पहुंच गये.
अब अस्पताल में मुकेश साहब डॉक्टर्स की निगरानी में बेड पर लेटकर आराम फरमा रहें थे,
और जैसे ही यशजी और खैय्याम साहब उनके रुम में आये वो उन्हें देखकर बेहद खुश हो गये.
इससे पहले की यशजी औऱ खैय्याम साहबं मुकेश जी से उनके तबीयत का हालचाल पुछते मुकेश जी ने खुद यश जी और खैय्याम साहबं से गुजारिश करना शुरु कर दिया कि भले ही कभी कभी के बाकी गाने किसी भी गायक से गवाएं लेकिन फिल्म का टाईटल ट्रैक उन्हीसे गवाएं.

मुकेश साहब ने इन दोनों से कहा कि मेरा इंतजार किजीए.
मुकेश जी की ये बात सुनकर दोनो के दोनो एकदम सन्न रह गये.
अपनी बीमारी से ज्यादा मुकेश जी को फिकर थी इस गाने की.
ये गाना इतना पसंद था मुकेश जी को कि अस्पताल में भी उन्हें कभी कभी का खयाल था.
खैर एक फनकार की इस ख्वाहिश को खैय्याम और यश चोपडा ने भी नजर अंदाज नही किया और मुकेश जी के स्वस्थ होने के बाद उन्हीं के आवाज़ में फिल्म के गानों की रिकार्डींग की.
खैर कभी कभी से जुडें हैं कई किस्से लेकिन उनका जिक्र करेंगें फिर कभी....
      

Tuesday, February 11, 2014

आखिर क्यों मां बनने से इंकार किया वैजयंती माला ने !!!

"मेरे पास मां है" फिल्म दिवार का ये फेमस डायलॉग आज भी फिल्म शौकिनों के जहन में ताजा है...
जितनी क्लासिक यह फिल्म है उतने ही क्लासिक है इस फिल्म के डॉयलॉग्ज भी...
मेरे पास मां है ये डॉयलाग आपने हजारों बार सुना होगा लेकिन क्या आप को पता है कि असली मां कौन थी...
चलिए हम आपको बतातें हैं इसका जवाब तो ये असली मां थी अपने जमाने की मशहुर अदाकारा वैजयंती माला...
जी हां फिल्म मेकर यश चोपडा वैजयंती माला को अपनी फिल्म दिवार में अमिताभ बच्च्न और शशी कपुर की स्क्रीन मां बनना चाहतें थे...
ये उस दौर की बात है जब वैजयंती माला करिअर के टॉप पर पहुंच कर फिल्मों से संन्यास ले चुकी थीं और यश चोपडा वैजयंती माला को दोबारा फिल्मों में लाना चाहतें थे...

दरअसल यश चोपडा अपने बडे भाई बी आर चोपडा की फिल्म नया दौर के वक्त से ही वैजयंती माला के फैन बनें थे...उनका सपना था कि वो जब भी फिल्में बनाएंगे वैजयंती माला के साथ जरुर काम करेंगें....
लिहाजा अपने इस सपने को पुरा करने के लिए यशजी ने अपने इस पसंदीदा आदकारा को दिवार में कास्ट करने का फैसला लिया...
लेकिन अफसोस यश जी का ये फैसला वैजयंती माला के फैसले को नही बदल पाया.
फिल्मों से ब्रेक लेने के बाद वैजयंती माला ने ये फैसला कर लिया था कि वो कभी भी फिल्मी परदे पर दोबारा वापसी नही करेंगी. उनका खयाल था कि उनके चाहनेंवालों  उन्हें हमेशा खुबसुरत हिरोइन के तौर पर ही याद करें....
लिहाजा इसी वजह से वैजयंती माला ने चाहकर भी यश चोपडा को हां नही कहा....
और फिर यह रोल ऑफर हुआ निरुपा रॉय को.

Monday, February 10, 2014

आखिर बेग़म अख़्तर को क्यों याद आए मदन मोहन !!!

वो मल्लिका-ए-ग़जल, तो वो हिंदी फिल्मों के गजलों के बादशाह...
दोनों का रास्ता अलग लेकिन मंजिल एक... गज़ल
और ग़जल की वजह से ही इन दोनों का हुआ आमना सामना...
आज किस्सा सुनातें हैं आपको हिंदुस्तान की मल्लिका-ए-ग़जल बेगम अख़्तर और मशहुर फनक़ार मदन मोहन की अजीबो गरीब मुलाकात...
बेग़म अख़्तर ये नाम बेहद बडा था....तमाम दुनिया को इनकी मखमली आवाज़ ने मदहोश कर दिया था.
गज़लों का तो दुसरा नाम बन गई थीं बेगम साहिबां...
लेकिन ऐसा क्या हुआ कि उन्हें मजबुर होना पडा अपने उमर और रुतबें से कम युवा संगीतकार मदन मोहन से रुबरु होने के लिए...
उस जमाने में फिल्म संगीत को गैर फिल्मी कलाकार अच्छी निगाहों से नही देखा करतें थे. फिल्म संगीत को बेहद मामुली तपके का संगीत माना जाता था...
ऐसा कम ही होता था जब कोई क्लासिकल संगीत का जानकार फिल्म संगीत को नवाज़े...
अब एक दिन बेग़म अख़्तर ने रेडियों पर एक गाना सुना... 
"गाने के बोल थे कदर जाने ना मोरा बालम बेदर्दी"...
ये गाना था मदन साहबं की पहली हिट फिल्म भाई भाई का...
उडते उडते सुने इस गीत की तो बेग़म साहिबां कायल हो गई उन्होंने फौरन इस गीत के फनक़ार मदन मोहन को फोन लगाया.

अब इन सब बातो से बेखबर मदन साहबं ने फोन उठाया तो दुसरी तरफ मल्लिकाएं गजल बेग़म अख़्तर की आवाज सुनकर उनके होश ही उड गयें.
बेग़म साहिबां ने पुछा कि ये गाना आप ही नें कंपोज किया है तो जवाब में मदन साहबं ने हां कहां.
फिर बेग़म साहिबां ने बडी अदबी से मदन मोहन से गुजारिश की वो ये गाना उन्हें गाकर सुनाए...
इतने बडे कलाकार की इस छोटीसी फरमाईश को भला मदन साहबं कैसे  पुरा नही करतें.
बसं फिर क्या मदन साहब ने गाना शुरु कर दिया कदर जाने ना मोरा बालमं बेदर्दी...
एक नही, दो नही, तीन नही बल्कि पुरे 18 दफे मदन मोहन ने यह गाना गाया सुरों की मल्लिका के लिए...
तो देखा आपने एक कलाकार ने कैसे की एक कलाकार के कला की कदर....
सुनिए वही गाना कदर जाने ना....
https://www.youtube.com/watch?v=_fIK1Lj-h6k

Sunday, February 2, 2014

VAISHALI'S BLOG: कहानी गुलज़ार के पहले गीत की ...

VAISHALI'S BLOG: कहानी गुलज़ार के पहले गीत की ...: क्या आप जानते हैं कि मशहुर शायर गुलज़ार को अपना पहला गीत लिखने मौका कैसे मिला... आज आपको बतातें है कि कैसे गुलज़ार ने तय किया गैरेज से गीत...

Saturday, February 1, 2014

क्यों बनें अमिताभ गेटकिपर !!!

क्या आप जानतें है अमिताभ बच्चन जैसे सुपर स्टार कभी गेटकीपर रह चुकें हैं...
अरे अरे गलत मत समझिए...
ये तो बिग बी की  एक ऐसी आदत है जिसनें उन्हें गेटकीपर बना दिया ...
चलिए आज हम आप को बताते है मि. बच्चन का किस्सा...
ये उस वक्त की बात है जब अमिताभ बच्चन फिल्मी परदे पर राज कर रहें थे..
70 और 80 के उस दशक में अमिताभ अपनी अदाकारी लोहा पुरी दुनिया मनवा चुकें थे...
एक के बाद एक सुपर हिट फिल्मों की अमिताभ ने झडी लगा दी थी...
लेकिन शोहरत के बुंलदी पर पहुंचने के बाद भी एक आदत ऐसी थी जो उनसे छुटती ही नही थी...
और ये आदत थी वक्त के पाबंदी की...
अपनी पहली फिल्म से अमिताभ वक्त के बेहद पाबंद थे...


जहां फिल्म स्टार बनने के बाद आर्टिस्ट घंटो शुटिंग पर लेट पहुंचा करते थे वहीं अमिताभ थे जो गलती से कभी देर से नहीं पहुंचते...
ऐसा ही एक वाकिया हुआ फिल्मीस्तान स्टुडियो में..
जहां अमिताभ को पहुंचना मार्निग शेड्युल में...
बसं वक्त के पाबंद अमिताभ तय वक्त पर स्टुडियो पहुंच गये लेकिन वहां देखते है तो क्या स्टुडियो के गेटकिपर्स ही गायब...
यानी कि मि, बच्चन स्टुडियो खुलने से पहले ही वहां पहुंचे क्योंकि उन्होने शुटिंग के लिए वही वक्त दिया था...
और ऐसा एक बार नही मिं. बच्चन के साथ ऐसा कई बार होता था, कि स्टुडियो के गेट खुलने और गेटकीपर के पहुंचने से पहले ही अमिताभ वहां पहुंच जाते.
आज इतने बरसो बाद भी अमिताभ की यही आदत है कि वो हमेशा ऑन टाईम होते हैं...
बिग बी शोहरत देखकर ये कहावत सच साबित होती कि जो वक्त की कदर करता है वक्त भी उसीकी कदर करता है ...   

Thursday, January 30, 2014

खाने की वजह से कैसे बना गाना...

आज आपको हम सुनाते है एक दिलचस्प कहानी...
एक गाने की जो बना खाने की वजह से...
फिल्म देख कबीरा रोया आप में से कितने लोगो नें देखी होगी यह तो नही कह सकतें लेकिन हां "कौन आया मेरे मन के द्वारे" यह महान गायक मन्ना डे की आवाज से सजा अमर गाना तो आपने जरुर सुना होगा.
आज की कहानी है इसी गाने की.
क्या आप जानतें है कि इस गाने का जन्म कैसे हुआ...
खाने की वजह से...
जी हां भिंडी गोश्त करी इसी लजीज पकवान ने जन्म दिया इस सुरीले गीत को...
चलिए आपको सुनातें हैं इस गाने के जन्म का किस्सा...
महान संगीत कार मदन मोहन इस गाने के रचैता है...

अपनी नायाब धुनों के लिए मशहुर मदन मोहन ने इस गीत को भी सुरों से सजाया और वो चाहते थे कि क्लासिकल संगीत के धनी मन्ना डे ही इस गीत को अपनी आवाज दे...
अब अपने तेवर के लिए मशहुर मन्ना दा को राजी कैसे किया जाए यही खयाल मदन मोहनजी की जहन में छाया रहा.
फिर एक दिन उन्होंने खुद अपने हाथों से खाना बनाया और मन्ना दा को दावत का न्योता दिया.
सारी फिल्म इंडस्ट्री जानती थी कि मदन जी बेहद अच्छा खाना बनातें हैं तो मन्ना दा इस न्योते को ना कर ही नही पाए.
अब मदन जी ने मन्ना दा के लिए उनके पसंद की भिंडी गोश्त करी बनाई जो मन्ना दा को बेहद पसंद आयी...
बसं फिर क्या दिल लगाकर खाना हुआ और उसके बाद गाना भी हुआ..
जो अमर हुआ...

Wednesday, January 29, 2014

कौन था असली गब्बर सिंग !!!

गब्बर सिंग ये नाम सुनते ही याद आते हैं ग्रैटेस्ट विलन अमजद खान...
गब्बर सिंग की दहशत, गब्बर सिंग की हंसी गब्बर सिंग का डर आज भी फिल्म शौकिनें के जहन में ताजा है...
लेकिन क्या आप जानते हैं कि अमजद खान गब्बर सिंग के लिए पहली पसंद नही थे...
जी हां वो अमजद खान नहीं थे जो गब्बर सिंग बनने वाले थें...
वो तो थे प्रेमनाथ...
जी हां ये सच है कि प्रेमनाथ ही थे वो जिन्हें गब्बर सिंग का किरदार पहले ऑफर हुआ था..


दरअसल रमेश सिप्पी गब्बर सिंग के किरदार को बेहद डरावना बनाना चाहते थे और  उस वक्त  प्रेमनाथ का बतौर खलनायक बेहद बडा नाम था.
इसलिए इस किरदार को यादगार का बनाने के लिए वो प्रेमनाथ को लेना चाहतें थे..
लेकिन प्रेमनाथ के बिगड़े मिज़ाज की वजह से उन्हें शोले में नही लिया गया और
इस तरह से अमजद खान जैसे नये एक्टर को बतौर गब्बर सिंग शोले में लॉंच किया गया..


Monday, January 20, 2014

सलमान शाहरुख थिरकेंगे एक साथ !!!

एक बार फिर एक साथ थिरकेंगे दो पुराने दुश्मन बनकर नये दोस्त...
एक बार फिर करेंगे ये दोनों ओम शांती ओम...
खान वॉर खत्म होते ही अब बॉलीवुड में छाया है दोस्ती का मौसम...
तभी तो इन दिनों बॉलीवुड के दो दुश्मन सरेआम एक दुसरे के गले मिलकर दोस्ती का पैगाम देते दिख रहें हैं..
जी हां हम सलमान और शाहरुख खान की ही बात कर रहैं...

पिछले साल इफ्तार पार्टी में गल लगकर एक दुसरे से दोस्ती का हाथ बढाने वाले सलमान और शाहरुख ने एक बार फिर गले लगकर अपने बीच की दुरियां मिटाने का फैसला किया....
और इस काम में उनकी हेल्प कर रहीं हैं फराहा खान...
खबर है कि फराहा खान अपनी अपकमिंग फिल्म हैपी न्युइयर में शाहरुख और सलमान दोनो को एक साथ एक स्क्रीन पर लाना चाहतीं हैं...
दरअसल ओम शांती ओम के तरज पर फराहा हैपी न्यु ईयर में भी एक मल्टी स्टार्रर सॉंग करना चाहतीं है जिसमें बॉलीवु़ड के तमाम नये पुराने सितारें तो हो ही लेकिन खास कर हो सलमान खान...
सुना है खुद शाहरुख भी यही चाहतें कि उनके साथ इस फिल्म में एक गाने में सलमान जरुर नजर आएं...
यानी कि अब तक खुद सलमान खान  शाहरुख के गले लगते दिख रहें थे वहीं अब खुद शाहरुख भी दोस्ती की पहल करना चाहतें हैं...
चलिए अब देखते है कि सलमान खान शाहरुख के इस दोस्ती की पहल का क्या जवाब देते है...