वो मल्लिका-ए-ग़जल, तो वो हिंदी फिल्मों के गजलों के बादशाह...
दोनों का रास्ता अलग लेकिन मंजिल एक... गज़ल
और ग़जल की वजह से ही इन दोनों का हुआ आमना सामना...
आज किस्सा सुनातें हैं आपको हिंदुस्तान की मल्लिका-ए-ग़जल बेगम अख़्तर और मशहुर फनक़ार मदन मोहन की अजीबो गरीब मुलाकात...
बेग़म अख़्तर ये नाम बेहद बडा था....तमाम दुनिया को इनकी मखमली आवाज़ ने मदहोश कर दिया था.
लेकिन ऐसा क्या हुआ कि उन्हें मजबुर होना पडा अपने उमर और रुतबें से कम युवा संगीतकार मदन मोहन से रुबरु होने के लिए...
उस जमाने में फिल्म संगीत को गैर फिल्मी कलाकार अच्छी निगाहों से नही देखा करतें थे. फिल्म संगीत को बेहद मामुली तपके का संगीत माना जाता था...
ऐसा कम ही होता था जब कोई क्लासिकल संगीत का जानकार फिल्म संगीत को नवाज़े...
अब एक दिन बेग़म अख़्तर ने रेडियों पर एक गाना सुना...
"गाने के बोल थे कदर जाने ना मोरा बालम बेदर्दी"...
उडते उडते सुने इस गीत की तो बेग़म साहिबां कायल हो गई उन्होंने फौरन इस गीत के फनक़ार मदन मोहन को फोन लगाया.
अब इन सब बातो से बेखबर मदन साहबं ने फोन उठाया तो दुसरी तरफ मल्लिकाएं गजल बेग़म अख़्तर की आवाज सुनकर उनके होश ही उड गयें.
बेग़म साहिबां ने पुछा कि ये गाना आप ही नें कंपोज किया है तो जवाब में मदन साहबं ने हां कहां.
फिर बेग़म साहिबां ने बडी अदबी से मदन मोहन से गुजारिश की वो ये गाना उन्हें गाकर सुनाए...
इतने बडे कलाकार की इस छोटीसी फरमाईश को भला मदन साहबं कैसे पुरा नही करतें.
बसं फिर क्या मदन साहब ने गाना शुरु कर दिया कदर जाने ना मोरा बालमं बेदर्दी...
एक नही, दो नही, तीन नही बल्कि पुरे 18 दफे मदन मोहन ने यह गाना गाया सुरों की मल्लिका के लिए...
तो देखा आपने एक कलाकार ने कैसे की एक कलाकार के कला की कदर....
सुनिए वही गाना कदर जाने ना....
https://www.youtube.com/watch?v=_fIK1Lj-h6k
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